Priyanka Verma

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लेखनी प्रतियोगिता - अशांत मन

अशांत मन


मन ना जाने क्यों इतना अशांत सा है,
अजीब से बैचैनी, होती है महसूस हमें
क्या जैसे हम याद करते हैं उन्हें?
वो भी क्या याद करते है हमें,

कितना समझा चुके उन्हें, पर नही
वो तो नादान बने से बैठे हैं,
रूठ कर मना लेने की आदत नही,
बस हमें तकलीफ देने पर तुले हैं,


अब कैसे उन्हें यकीन दिलाएं,
रिश्ता जो प्यार से गढ़ा जाता है,
उसका एक सिरा तुम्हारे हाथ में,
दूसरा हमारे हाथ से थमा होता है,


अशांत से मन को, देते रहते हैं दिलासा,
समझने, समझाने की नहीं बुझने देंगे आशा,
एक दिन तो वो आएगा,

जब तुम्हें हमारी अहमियत का अहसास होगा,
जीते जी ना सही, हमारे मरने के बाद
हमारी कमी का अहसास होगा।।

प्रियंका वर्मा
16/6/22

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7 Comments

Pallavi

18-Jun-2022 10:01 PM

Nice post 😊

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Seema Priyadarshini sahay

17-Jun-2022 03:49 PM

Very nice

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Shrishti pandey

17-Jun-2022 03:16 PM

Nice

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